अहा

बस्ते को कंधे में टांग कर
जब गले में पानी की बोतल डाल
घर से निकलते थे
अहा, वे भी क्या दिन थे।
तेल की चम्पी के बाद
जब चोटियां गूथ कर
सफेद रिबन बांधते थे
अहा, वे भी क्या दिन थे।
सवेरे की प्रार्थना के समय
जब ऐ मालिक तेरे बंदे हम
का एकजुट सुर लगाते थे
अहा, वे भी क्या दिन थे।
आँखों की रोशनी बढ़ाने के लिए
जब ओस वाली घास में
नित सवेरे भ्रमण करते थे
अहा, वे भी क्या दिन थे।
न्याय-अन्याय की कहानी सुन
जब झूठ बोलने के बाद सीधे
गोलज्यु का स्मरण करते थे
अहा, वे भी क्या दिन थे।
गांव की ओर कदम बढ़ाते हुए
जब थकने पर छाया तले बैठ कर
चाव से आलू-पूरी खाते थे
अहा, वे भी क्या दिन थे।
जीवन के सबसे बेहतरीन दिन
जब अतीत के अवशेष बन
स्मृति की शोभा बढ़ाते हैं
तब जी यह कहने को
मचल उठता है
कि
अहा, वे भी क्या दिन थे।
