मुस्कुरा कर यूँ ही बाहर से
और कितनी यादें भुलाओगे?
जाने कितने गम समेटोगे
और कितने दर्द मिटाओगे?
जाने कितनी बातें उगलोगे
और कितनी दिल में दबाओगे?
जाने कितने बंधन तोड़ोगे
और कितने सुख ठुकराओगे?
मुस्कुरा कर यूँ हीं बाहर से
खुद को और कितना रुलाओगे?
इसी मुस्कुराहट का घूँघट डाले
और कितने आंसू छिपाओगे?