तुम्हारा मेरी ओर देखना और मेरा हाथ थामने से पहले अपना हाथ आगे बढ़ाना ऐसा नहीं कि इन्हें किसी और ने थामा ही न हो मग़र जहां प्यार नहीं अधिकार जताया गया हो उनके लिये तुम्हारा यूँ सकुचा कर हाथ बढ़ाना ये तो पहली बार है
पांच बज चुके हैं चित आकुल है मन व्याकुल है दुःस्वप्न था ये सोचकर फ़िर आँखें मूँदने को थे कि
मन के हारे हार है मन के जीते जीत हार रहे हैं कैसे बचाएं कोशिशें भी नाक़ाम गर मन ही हराये
हमारे शहर से गुज़रे बिन आवाज़ तो यही सही नसीब में वस्ल की सूरत नहीं तो क्या किया जाये
ख़्वाहिशें हमारी आँसुओं में बहती हैं सुनो ग़ौर से ये आँखें क्या कहती है
जंग का महज़ आग़ाज़ हुआ है इस बग़ावत की उम्र अभी बाक़ी है
फन फैलाए हुए नाग आहिस्ता आहिस्ता रेंगतें हैं अपने शिकार की ओर और करते हैं इंतज़ार तब तक जब तक
यह एक काल्पनिक कृति है इसकी वास्तविक व्यक्तिविशेष या घटनाओं से किसी भी प्रकार की समानता विशुद्ध रूप से महज़ एक संयोग है या नहीं
इस संसार में निर्लज्ज बहुत थे मैं लाख़ ख़ुद को बचाती आई कितने हाथों ने टटोला है इसे ये बदन देगा इसकी गवाही
वे कहते हैं, बंजारन जिसका घर नहीं ठौर ठिकाना नहीं वे क्या जाने कि जो चाहरदीवारी से कभी सफ़र में कभी मुसाफ़िर में कभी मंज़िल में घर तलाश ले उसे कहते हैं, बंजारन
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