वे कहते हैं, बंजारन
जिसका घर नहीं
ठौर ठिकाना नहीं
वे क्या जाने कि
जो चाहरदीवारी से
कभी सफ़र में
कभी मुसाफ़िर में
कभी मंज़िल में
घर तलाश ले
उसे कहते हैं, बंजारन
वे कहते हैं, बंजारन
जिसे मोह नहीं
आसक्ति नहीं
वे क्या जाने कि
जो काया से
कभी मन में
कभी मनमीत में
कभी रूह में
आज़ादी तलाश ले
उसे कहते हैं, बंजारन
वे कहते हैं, बंजारन
जो ख़ानाबदोश रही
कहीं ठहरती नहीं
वे क्या जाने कि
जो स्थिरता से
कभी कला में
कभी कलाकार में
कभी कहानी में
राह तलाश ले
उसे कहते हैं, बंजारन
एक ही तो जीवन है
जो
माटी की काया
माटी में मिला ले
उसे कहते हैं, बंजारन
जो
समाज की बेड़ियां
तोड़ जड़ें फैला ले
उसे कहते हैं, बंजारन
जो
अतीत का साया
वर्तमान में भुला ले
उसे कहते हैं, बंजारन
जो
त्याग कर मोह-माया
अपना आप लुटा ले
उसे कहते हैं, बंजारन