तेरी सुगंध चादर से मिटाने लगी हूँ
मैं रात को बत्ती बुझाने लगी हूँ
तेरी जगह खुद को ही गले लगाने लगी हूँ
मैं रात को बत्ती बुझाने लगी हूँ
तेरी यादों को भी अब ख़ाक बनाने लगी हूँ
मैं रात को बत्ती बुझाने लगी हूँ
तेरी तस्वीर को आँखों से उतारने लगी हूँ
मैं रात को बत्ती बुझाने लगी हूँ
तेरे आने की आस को भी भुलाने लगी हूँ
मैं रात को बत्ती बुझाने लगी हूँ
तेरे बाद खुद को और भी भाने लगी हूँ
मैं रात को बत्ती बुझाने लगी हूँ
तेरे पैग़ाम भी ठुकराने लगी हूँ
मैं रात को बत्ती बुझाने लगी हूँ
तेरे न आने पर मैं भी अब जाने लगी हूँ
मैं रात को बत्ती बुझाने लगी हूँ।