सुनता हूँ जो गीत रातों में मैं
धुन सभी उसे भी सुनाना चाहूँ
जागा करती है जो तन्हा रातों में
उसे अपनी बाहों में सुलाना चाहूँ
मांगता हूँ जो खुशी ऊपरवाले से मैं
सारी की सारी उस पर लुटाना चाहूँ
लगे हैं जितने घाव उसके ह्रदय में
उनपर प्रेम का मरहम लगाना चाहूँ
छिपाता हूँ जो उसकी ज़रूरत मैं
उसे उसकी एहमियत जताना चाहूँ
लिखे हैं जो नग़मे उसके बारे में
किसी रोज़ उन्हें गुनगुनाना चाहूँ
चाहता हूँ जिसे ख़ुद से ज़्यादा मैं
उसे कभी ये सब कुछ बताना चाहूँ
बसती है जो मेरे ख़्वाबों के शहर में
उस संग अपना एक घर बसाना चाहूँ