दर्द गहराया है भीतर
ये किस दोराहे पर खड़े हैं हम
दिल धड़क रहा है जिधर
उस राह से वापस लौटें हैं हम
अब यहाँ से जाएं किधर
जान बूझकर भटकें हैं हम
आँसूओं से भीग गई डगर
हँसी का रास्ता भूलें हैं हम
चाहत तो उनकी बहुत है मग़र
व्यथा के सागर में डूबे हैं हम
कहने को तो अपना है शहर
पर ख़ुद को पराया माने हैं हम
शाम से अब हो गई है सहर
फ़िर भी अंधकार में बैठे हैं हम
मोहब्बत ने यूँ ढाया है कहर
बड़ी ख़ामोशी से टूटे हैं हम
जज़्बात की न हो पाई कदर
और पूरी तरह से लुटे हैं हम
दर्द गहराया है भीतर
ये किस दोराहे पर खड़े हैं हम