कसक

ख़्वाहिश
तो धीर शब्द है
अपने अरमानों को
कोरे कागज़ पर
ख़ूबसूरती की
चूनर उड़ाये
बैठाने का
चुनरी भी
इसलिए
क्योंकि
आज़ादी का
एहसास
दिलाती है
कसक
तो अधीर शब्द है
अपनी ख़्वाहिशों को
कोरे कागज़ पर
बेसब्री की
माला पहनाये
बैठाने का
माला भी
इसलिए
क्योंकि
घुटन का
आभास
कराती है
मैं
ख़्वाहिश हूँ
उसकी
तो
वो मुझे
आज़ाद
उड़ने
देता है
गौर करें
आज़ाद
उड़ने
देता है
मग़र
उड़ने की
इज़ाज़त देना
हक नहीं
समझता
ख़ैर
अब ख़्वाहिश
ज़हन में
बहुत दिनों
से कैद
रह गई है
और
कैद में
घुटते घुटते
मेरी ख़्वाहिश
उसकी कसक
बन गई है
मैं
कसक हूँ
उसकी
तो
वो मुझे
कैद में
रखता है
गौर करें
कैद में
घुटने
देता है
और
सांस लेने की
इज़ाज़त देना
हक नहीं
समझता
ख़्वाहिश
तो धीर
शब्द है
इसलिए
सब्र कर लेती है
कसक
तो अधीर है
इसलिए
सब्र का बांध
ध्वस्त कर देती है
और
साथ ही
अपनी
ख़्वाहिश को भी।
