क्या नहीं चाहिए?

सुनो
अरे दाएं बांये
क्या देखते हो
तुम्हें ही
पुकारा है
हां बाबा
बताओ ज़रा
तुम्हें जीवन में
क्या नहीं चाहिए?
क्या कहा
मैं बताऊँ?
तो फ़िर
सुनो।
.
.
मुझे
रात में
फ़ोन की स्क्रीन
नींद के आगोश
से ज़्यादा नहीं
चाहिए
गर आठ घण्टों
से ज़्यादा
सो जाऊं तो
अपराधबोध नहीं
चाहिए
और अगर आठ
घण्टे पूरे न हों
तो आंखों के नीचे
काले घेरे नहीं
चाहिए
सफ़ेद रंग पहनूं
तो उस पर
कैचप/कीचड़ के
दाग नहीं
चाहिए
पीरियड के
दिनों में
दर्द और
चिड़चिड़ापन नहीं
चाहिए
बारिशों में
भीगने का
दिल करे तो
सर्दी खांसी नहीं
चाहिए
सर्दियों में
बर्फ़ का गोला
खाने लगूँ तो
माँ की फटकार नहीं
चाहिए
गर्मियों में
शॉर्ट्स में घूमूं
तो समाज की
अफवाएं नहीं
चाहिए
मोहब्बत करूँ
तो अपनी
आज़ादी की
सौदेबाज़ी नहीं
चाहिए
और?
और ज़िन्दगी जियूँ
तो अपने लिए
उस पर किसी
और की शर्तें नहीं
चाहिए
कहानी लिखूँ
तो अपने विचारों
पर किसी और
की बंदिश नहीं
चाहिए
उन्मुक्त उडूँ
तो अपने ख़्वाबों
पर किसी और
की लगाम नहीं
चाहिए
आज तो
बस इतना
ही था
कहने के लिए।
तुम कहो
तुम्हें अपने
जीवन में
क्या नहीं चाहिए?
