तनिक ठहरो
ज़रा मेघ को
घन घन
बरसने तो दो
बारिशें तो मिट्टी
महकाएंगी
बिज़ली सा मुझे
कौंधने तो दो
बूदें तो केशों में
समा जाएंगी
जटाओं से धारा
बहने तो दो
बदन पर टप टप
कर सताएंगी
बेफिक्र आज मुझे
भीगने तो दो
तुम्हारी नीयत
इन बूँदों से पहले
फिसल जाएगी
बेझिझक इन्हें सैर
करने तो दो
पानी को दिशा
मिल ही जायेगी
थोड़ा राह में
भटकने तो दो
राज़ की बात
छिप नहीं पायेगी
नदी को सागर से
मिलने तो दो
ये बूंदें बदन पर
थम नहीं पायेंगी
इस एहसास में
तर होने तो दो
तुम्हारी नज़रें
यहीं अटक जायेंगी
मुझे अदा नई
कोई छेड़ने तो दो
तनिक ठहरो
मौसम की
पहली बरसात
होने तो तो