ओ रे पुरवा के झोंके
तनिक एक बात तो बताता जा
जहाँ से तू आया है आज
वहाँ की भोर कैसी दिखी थी?
क्या आज भी सूर्य को
अर्घ्य देने के लिए मेरे बाबा
भोर होते ही आंगन में लगी
तुलसी के पौधे के पास
जल लिए खड़े दिखे थे?
क्या आज भी चूल्हे पर चाय
बनाने के लिए मेरी अम्मा
भोर होते ही रसोई में जा
चाय को धीमी आंच में रख
केतली में उतारती दिखी थी?
क्या आज भी गलीचे पर जमी
धूल झाड़ने के लिए मेरी बुआ
भोर होते ही तमाम हथियार उठा
दुपट्टे को कमर में बाँध घर का
कोना कोना चमकाती दिखी थी?
ओ रे पुरवा के झोंके
तनिक एक बात तो बताता जा
जहाँ से तू आया है आज
वहाँ की भोर क्या ऐसी दिखी थी?
क्या बाबा के, अम्मा के, बुआ के
मुख पर शांति के साथ कुछ
उम्र की रेखाएं भी बिखरी थीं?
क्या बाबा के, अम्मा के, बुआ के
ह्रदय में वात्सल्य के साथ कुछ
थकावट की लहरें भी उमड़ी थीं?
क्या बाबा के, अम्मा के, बुआ के
हाथों में ताक़त के साथ कुछ
कमज़ोरी भी झलकी थी?
ओ रे पुरवा के झोंके
तनिक एक पैगाम तो लेता जा
ओ रे पुरवा के झोंके
तनिक उनके माथे को सहलाता जा
ओ रे पुरवा के झोंके
तनिक उस ह्रदय को बहलाता जा
ओ रे पुरवा के झोंके
तनिक उन हथेलियों को चूमता जा
ओ रे पुरवा के झोंके
तनिक उनके साथ घूमता जा
ओ रे पुरवा के झोंके
तनिक एक बेटी का प्यार तो लेता जा
और बदले में उसका संसार देखता जा