राँझे दी हीर

किसी शायरी में बांध रही हूँ तुझे
तू इतना भी ना हो अधीर
चाहे लाख चेहरा छिपा ले
मेरी आँखों में बस चुकी है तेरी तस्वीर
ऐ राँझे कहाँ भटकता फिरता है
यहाँ बैठी है तेरी हीर
किसी कविता में ढाल रही हूँ तुझे
तू इतना भी ना हो अधीर
चाहे लाख नज़रें चुरा ले
इश्क़ का लग चुका है तुझे तीर
ऐ राँझे कहाँ भटकता फिरता है
यहाँ बैठी है तेरी हीर
किसी कहानी में बुन रही हूँ तुझे
तू इतना भी ना हो अधीर
चाहे लाख मुश्किलें टकरा ले
मैं बूझ लूंगी कोई तदबीर
ऐ राँझे कहाँ भटकता फिरता है
यहाँ बैठी है तेरी हीर
किसी नज़्म में गुनगुना रही हूँ तुझे
तू इतना भी ना हो अधीर
चाहे ज़माना कितना आज़मा ले
हमारी जुड़ चुकी है तकदीर
ऐ राँझे कहाँ भटकता फिरता है
यहाँ बैठी है तेरी हीर
तू हीर दा रांझा
और मैं राँझे दी हीर।
