सिरहाने पर
अपने
कल की
चिंता का
बोझ उतार
देते हो
और फ़िर
सवाल करते
हो कि
ये कमबख़्त
नींद क्यों
नहीं आती
बिस्तर पर
अपने
अतीत की
यादों का
बोझ उतार
देते हो
और फ़िर
सवाल करते
हो कि
ये कमबख़्त
तन्हाई क्यों
नहीं जाती
तकिया पर
अपने
दिल का
हाल आँखों
से उतार
देते हो
और फ़िर
सवाल करते
हो कि
ये कमबख़्त
राहत क्यों
नहीं आती
नितदिन
यही क्रम
निभाते हो
और फ़िर भी
सवाल करते
हो कि
ये कमबख़्त
उदासी क्यों
नहीं जाती