उसकी ज़ुल्फ़ सुलझाते सुलझाते मैं ख़ुद उसमें उलझता चला जाता हूँ वो पलट कर देखती है मेरी ओर और मैं उन अदाओं से मचलता चला जाता हूँ
सुनता हूँ जो गीत रातों में मैं धुन सभी उसे भी सुनाना चाहूँ जागा करती है जो तन्हा रातों में उसे अपनी बाहों में सुलाना चाहूँ
ख़ामोश हो गया है वो जो था मुझे सब कुछ बताने वाला बातें याद रखता था जो अब बन गया है उन्हें भुलाने वाला नाराज़ हो गया है वो जो था हरदम मुझे मनाने वाला बाहों में था जो अब बन गया है यादों में समाने वाला
चाँद और वो एक दूजे से इतने भी अलग नहीं हर रात चाँद बदलता है आकार भीतर बदलती रहती है वो भी वो सूर्य की ओट में दमकता है खिलती है तेरी रोशनी में वो भी
सुना है वो ज़माने से हमारी शिकायतें करता फिरता है एक हम हैं जो उसके लबों से अपना ज़िक्र सुन मचल जाते हैं वो गैरों की महफ़िलों में गुज़ारता है आजकल शाम एक हम हैं जो उसके आने की उम्मीद से बहल जाते हैं
तुम होते तो अलग बात होती सवेरे की अदरक वाली चाय पर हमारी गुफ़्तगू कमाल होती मैं अपनी कविताएं पढ़ती तो तुम्हारी कहानियां भी साथ होती तुम होते तो अलग बात होती
'चीज़' टूटी तो उसे जोड़ने की रहमत करो मैं 'इंसान' हूँ, मुझसे बस मोहब्बत करो फ़ूल टूटा तो उसकी माला बना दी माला बिखरी तो पूजाघर में सजा दी सिलाई उधड़ी तो धागा सुई चला दी किताब फ़टी तो जिल्दबन्दी करा दी सिलवटें बनीं तो इस्त्री कर मिटा दीं दरारें बनीं तो पोटीन की चादर चढ़ा दीं 'चीज़' टूटी तो उसे जोड़ने की रहमत करो मैं 'इंसान' हूँ, मुझसे बस मोहब्बत करो
हम नज़रों के खेल को इश्क़ का नाम दे बैठे आपने तो गुज़ारी केवल एक शाम हमारे साथ हम उस शाम के सहारे पूरी ज़िन्दगी बिता बैठे