आओ तोलते हैं अपना ईमान इस तराजू पर सुना है बेईमानों को नये ख़िताब मिल रहे हैं ज़रा झाँककर देखते हैं अपने गिरेबान में भी अपने भी तो बीते कल के दाग़ दिख रहे हैं
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चंद पंक्तियां
'चीज़' टूटी तो उसे जोड़ने की रहमत करो मैं 'इंसान' हूँ, मुझसे बस मोहब्बत करो फ़ूल टूटा तो उसकी माला बना दी माला बिखरी तो पूजाघर में सजा दी सिलाई उधड़ी तो धागा सुई चला दी किताब फ़टी तो जिल्दबन्दी करा दी सिलवटें बनीं तो इस्त्री कर मिटा दीं दरारें बनीं तो पोटीन की चादर चढ़ा दीं 'चीज़' टूटी तो उसे जोड़ने की रहमत करो मैं 'इंसान' हूँ, मुझसे बस मोहब्बत करो
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मोहब्बत करो
तुमने मेरी कविताएं पढ़ी हैं मेरी आत्मकथा के अंश नहीं इन किस्सों में मेरे अतीत के हिस्से इन किरदारों में लोगों के चेहरे और इन कहानियों में यथार्थ की झलक देखने की नाक़ाम कोशिश न करो सवाल हैं तो पूछने का हौसला रखो ख़ुद ही जवाब देने हैं तो अलग बात है
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सवाल जवाब